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Showing posts from December, 2017

1 जनवरी को नव वर्ष न मनाएं

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1st जनवरी हमारा नव वर्ष नहीं हे : मुझे दुख है कि मैं आज से पहले भारतीय नव वर्ष को जान ही न पाया,भारतिय सस्कृति के हिसाब से मनाए नव वर्ष आज मेरे मित्र ने मुझे एक पोस्ट भेजी जिसने मेरे पिछले 25 सालों में की जा रही गलतियों एहसास कराया। दोस्तों यह गलती आप लोग भी किसी ना किसी कारण वश करते हैं। मुझे याद है बचपन में माता जी दादा दादी चैत्र मास में पूजा का आयोजन करते थे । और हमारे लिए नए-नए कपड़े भी बनाए जाते थे। परंतु  1 जनवरी आने से पहले ही हमारे टीवी एवं अखबारो मे नव वर्ष आने वाला हे ये सस्ता लैला और टीवी पर विशेष रंगारंग कार्यक्रम आयेगा उसे पॉपुलर कर दिया जाता था । और मैं भी अपने मित्रो के साथ खूब मस्ती करता था । और पिछले इतने सालों से हम सभी बहुत खुशी से झूम झूम कर 31 दिसंबर की रात को 1 जनवरी की सुबह तक नाच नाच कर एक कर देते हैं। आज जब मैंने अपने मित्र की पोस्ट पड़ी तब मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं इतने सालों तक किस तरीके से अपनी संस्कृति का दमन करते रहा । आज मुझे अपनी गलतियों का एहसास हुआ कि मैंने जब मेरे माता पिता दादा दादी हिंदू नव वर्ष का पूजन करते थे तब उसकी महता को ना समझा। मित्र

रौतिया समाज छतीसगढ़

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छत्तीसगढ़ के कंडोरा गांव में वार्षिक रौतिया महा समेलन खेल का आयोजन किया गया था। 

रौतिया महा समेलन कादोपानी ,प्रखंड -बोलबा,झारखण्ड

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र्रौतिया सामाजिक जनजागृति नीतियां

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सामाजिक बदलाव के लिए कुछ युवा मिलकर सामाजिक कार्य करने का निर्णय लिया गया। विभिन्न मुद्दों पर बात विचार किया गया ,सभी ने अपने अपने पक्ष रखे। एक छोटी सी कोसिस ने आज कुछ लोगो को साथ लेकर सामाजिक बदलाव के लिए अग्रसर हुए हैं।  मैने अपने जीवन में बहुत सारे बदलाव को नजदीक से देखा है ,जिस गांव में कभी लोग प्यार से मिल जुल भाईचारे के साथ रहते थे वो आज एक दूसरे से खफ़ा हैं,कभी पर्व त्यौहार में सभी मिल खुशियों में शरीक होते थे ,आज वो एक दुसरे से दूर हैं।लोगो की गरीबी ,लोगो की अज्ञानता बढ़ गयी है,अब लोग सिर्फ अपने से मतलब रखने लगे हैं। जमीन बेच कर जिंदगी  पालने को मजबूर हो गए हैं। शिक्षा भी मिली पर अज्ञानता खत्म नही हो सकी,न ही एकता आयी। बहुत सारे समस्यों को दूर करने के लिए हम सबने एक कदम उडाया है ,  अब मिल कर लोगो को जागरूक किया जायेगा,अब मिल कर गांव गांव जाकर कृषि की आधुनिक विधि के बारे जानकारी देनी होगी। गरीब गांव टुटा परिवार  रोते हुए बच्चे के आँख में गरीबी की आँशु , फ़टे  कपड़ो में बेबस जिंदगी , मायूसी से भरी निगाहें जो रात दिन एक रौशनी का इंतेज़ार में जिंदगी गुजार  रही हैं ,अब हमसब को मिल कर

रौतिया समाज बंगाल

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रौतिया समाज बंगाल में एक युवा समूह के द्वारा बहुत तेजी से जन जागृति का कार्य किया जा रहा है। समाज के सभी समस्याओं पर सबने अपने अपने विचार दिए। सामाजिक पिछड़ेपन और गरीबी को दूर करने के लिए कुछ नीतियां बनाई गई । झारखण्ड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ राज्यो में रौतिया जाति को पिछड़ी वर्ग  मे सरकार द्वारा रखा गया है। बंगाल में आज भी रौतिया जाति को पिछड़ी जाति का लाभ नही मिल पा रहा है।रोशन सिंह के द्वारा एक विशेष समूह का निर्माण हुआ जो गांव गांव जाकर लोगो को अब जागरूक कर रहे हैं।                              

बख्तर साय और मुंडल सिंह की वीरगाथा

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04th April : ---------------- #1812 ई. में दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में #बख्तर_साय (परगना : नवागढ़ वर्तमान पतराटोली प्रखंड रायडीह) एवं #मुंडल_सिंह (परगना : पनारी वर्तमान प्रखंड गुमला का उत्तरी भाग) दोनों जागीरदार, ने अंग्रेजों के खिलाफ भीषण युद्ध को अंजाम दिया | जब ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को कर के रूप में 12,000 रुपये का भुगतान करने के लिए, छोटानागपुर के राजा गोविंद नाथ शहदेव को आदेश दिया, तो बख्तर साय ने जागीरदार के रूप में नवागढ़ परगना क्षेत्र के किसानों की ओर से इस कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया। इसने एक लड़ाई को जन्म दिया जिसमें बख्तर साय ने हिरा राम को मार डाला, जिसे रातू राज-दरबार ने इस कर को एकत्र करने के लिए भेजा था । इस घटना की जानकारी मिलने पर इसे अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह मानते हुए रामगढ़ के मजिस्ट्रेट ने लेफ्टिनेंट एच. ओडोनेल के अगुवाई में हजारीबाग से एक सेना की टुकड़ी को भेजा, जबकि जशपुर और सरुगुजा (वर्तमान छत्तीसगढ़ में) के राजाओं को सभी ओर से घेराबंदी का निर्देश दिया गया | इस समय, मुंडल सिंह, बख्तर साय की  मदद करने के लिए नवागढ़ पहुंचे । यह लड़ाई