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Showing posts from October, 2019

Rautiya village बेलगांव ,gumla

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#बेलगांव #जो_आँखों_ने_देखा_उसी_को_इस_लेख #में_लिख_रहा_हूँ ,गुमला से बिलकुल कुछ ही दूरी में स्तिथ रौतिया गांव बेलगाँव । बेलगाँव के बारे काफी कुछ सुना था पर कभी जाने का मौका नही मिला था ,कुछ महीने पहले रास्ते से गुजर रहा था तो गूगल मैप से गांव को ढूंढ कर बेलगाँव चला गया , गांव से पहले एक रौतिया  छात्रवास दिखा आगे एक आम का बगीचा उसके आगे गया तो रास्ते के किनारे स्वतंत्रा वीर सेनानी बख्तर साय और मुंडल सिंह की मूर्ति बनी हुई थी , आगे गांव के अंदर जैसे ही घुसा सामने एक बजरंग बली की प्रतिमा नजर आयी ,भगवान को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ा , चारों तरफ मैंने नजरें गुमा कर पूरे गांव को देखा ,,पुरे गांव को देखने के बाद मैं काफी उदास हो गया ,,हर रौतिया गांव की तरह यह गांव भी मुझे एक सन्नाटे से भरी मायूसी वाली जिन्दगी लोगो की लगी , ,मेरे मन में एक ही बात चल रही थी ,की एक गांव जो गुमला के इतने नजदीक है, फिर भी गांव में समय के साथ कुछ नही बदला है ,चंद सालों में गुमला के चारो ओर घर बनते जा रहे ,दूर दूर से लोग जमीनें लेकर घर बना रहे दुकानें खोल रहे , और जो कई पीढ़ियों से उस गांव में रह रहे ,वो आज भी उसी

ढेकी स्वदेशी मशीन

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#सभी_रौतिया_भाई_बहन_पढ़े इस स्वदेशी परम्परागत मशीन का नाम है ढेकी । सभी रौतिया गांव और परिवारों में इसका खास उपयोग और महत्व था ,इस ढेकी से चावल, गेहूं ,कई तरह के अनाजो को पिसा जाता था ,इस ढेकी में एक छोर को पैर से दबाया जाता था ,दूसरे छोर में  लोहे का गोल सा समान लकड़ी के साथ लगा रहता था ,उस लोहे के द्वारा ही अनाज की पिसाई होती थी ,,,,पहले जमाने में आधुनिक मशीने लोगो के पहुँच से काफी दूर थे ,सभी परिवारों में इस ढेकी से ही अनाज पीसे जाते थे ,यह ढेकी एक  वैज्ञानिक आधार से भी काफी लाभदायक था ,इसके द्वारा पीसे हुए अनाज में पोषक तत्व की मात्रा  काफी होती थी और पोषक तत्व बरकरार होते थे ,,सुबह उठ कर ही घर की महिलाएं पैरो से ढेकी के एक छोर में दबाव देते और दूसरे छोर से वो अनाज को पिसता था ,इस प्रक्रिया में महिलाओे का शारीरिक  कसरत भी हो जाता था,क्यों की इससे ब्लड सर्कुलेशन काफी अच्छा होता था और कई बीमारियों से हमे सुरक्षित करता था,,,,हाथ के द्वारा भी चक्की से अनाज पीसे जाते थे जिसका फायदा  महिलाओ को गर्भपात के दौरान काफी फायदा मिलता था ,क्यों की चक्की को हाथ से गुमाने पर सीधे तौर पर पेट

गांव का जीवन और महिला का संघर्ष

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# पूरा_पढ़े #गांव_का_जीवन_और_महिला_का_संघर्ष आज मैं गांव के जनजीवन में महिलाओं के कार्यो के बारे जिक्र करने वाला हूँ ,एक परिवार और घर में एक माँ ,एक स्त्री का अहम रोल होता है ,वो घर की लक्ष्मी होती हैं , हमारे रौतिया परिवारों में महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक पुरे दिन घर का काम से लेकर खेतो का काम भी बखूबी करती हैं ,गांव में सबसे पहले ,सुबह उठ कर  घर की  माताएं बहने घरों में आँगन में झाड़ू लगाती हैं ,उसके बाद घर के सारे गंदे बर्तन धोती हैं ,कुँए और नलकूप से पिने का पानी लाती हैं ,फिर पुरे परिवार के लिए खाना बनाती हैं ,पुरे घर में बच्चो से लेकर खाने पीने की सारी जिमेवारी एक माँ में होती है ,,,ज्यादातर रौतिया परिवारों का घर कच्चे मिट्टी से बना होता है इसके कारण समय समय पर गोबर से लीपना भी पड़ता है ,घरों में लिपाई पुताई कर साफ़ सफाई करनी पड़ती है ,अगर एक गांव में महिला का पूरा जीवन देखेंगे तो संघर्ष और मेहनत से भरा होता है , पुरे घर को खाना खिलाने के बाद ही घर की माताएं खाना खाती हैं, ये हमारे परिवारों के संस्कार हैं, ज्यादातर पति पत्नी में बोलचाल संवाद बहुत ही इज्जत के साथ आउ चलु का प्

बचपन की यादें

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#पढ़े_और_बचपन_की_यादें_ताजा_करे ।बचपन की वो यादें ,जब बच्चो के साथ खूब खेला करते थे ,कभी साइकिल के पहिए को गाड़ी बना लेते ,कभी चप्पल को काट पहिए  बना लेते ,कंचे आटे खेलते दिन गुजर जाता था ,लुका छिपी का खेल बड़ा मस्त होता था , गांव के नदियों में या तालाबो में खूब उछल उछल कर छलांगे लगाते ,और कभी झगड़े होते तो wwe जैसा एक्शन वाला मार पीट भी हो जाता ,,बचपन में सबका उपनाम होता था ,चिढ़ाने के लिए कई तरह के नामो से संबोधन  किया जाता था ,बचपन में दुनियादारी से दूर अपनी दुनिया थी ,बचपन में मार पीट और लड़ाई का भी अपना मजा होता था ,होली के दिन का बचपन में काफी इंतेजार रहता था ,कुछ दिन पहले से ही बांस काट कर पिचकारी बनाई जाती थी ,और पलास के फूलों को पानी में उबालकर रंग बनाया जाता था,शैतान बच्चे तो रंग में केले का गद मिला  देते ,उनको ऐसा करके लगता कि मानो उन्होंने परमाणु हथियार बनाया हो ,,खूब दौड़ा दौड़ा कर रंग लगाया जाता ,फिर होली खेलने के बाद सभी नदी तालाबो में चेहरे और हाथो का रंग निकालते ,घरों में उस दिन गरमा  गर्म धुसका ,बरा ,मालपुआ ,बन कर तैयार होता था ,,,गांव में बीती ,पीठो का  खेल भी बड़ा हमने खेला

चरण स्पर्श पाएं लागू गोड़ लगी

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#चरण_स्पर्श_पाएं_लागू_गोड़_लगी। हमार भारत देश संस्कार एवं संस्कृति प्रधान देश हय, हिंया आपन गुरू तथा आपन से बड़े बुजुर्ग मनकर गोड़ लगेक कर परंपरा सादियो से चलते अवत हय। गोड़ लागेक सिर्फ गोड़ के छुवेक नई बल्कि बड़ मन से आशीर्वाद लेजेक होवेला, बड़ मनकर सम्मान करेक होवेला। लेकिन एखन पश्चिमि संस्कार एवं संस्कृति (Western Culture) कर प्रभाव आधुनिकता कर नांव से हमार भारतीय संस्कृति में बहुत ज्यादा बुरा असर डालेक लइग गेलक। हमार हिंदुस्तानी संस्कृति के बहुत कोई मजाक या हंसयापद बनाए देई हयं और एहे उ कारण हय कि एखन कर हिंदुस्तानी युवा वर्ग आपन ही संस्कृति संस्कार कर विशेषता के न जानेक सकथे आउर न ही मानेक सकथे। चारण स्पर्श/ पाएं लागू (हिंदी में), गोड़ लागी (हमार सदानी/नागपुरी में) करेक कर धार्मिक आउर वैज्ञानिक विशेषता आउर लाभ आइज हमीन हमार युवा भाई बहीन मनके जानकारी देई के समझाएक कर कोशिश करब। सायद आपन संस्कृति कर विशेषता कर बारे सही जानकारी कर अभाव में ही हमार युवा वर्ग कर बीच से बहुत सारा परंपरा संस्कृति छुटते जा थे। ◆जब हम आपन से बड़े कर गोड़ लगील तो हमीन के आशीर्वाद प्रदान करल जाएल। इ बड़े मनकर

Bakhtar say and mundal Singh information

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हिंदुस्तान के वीर सपुत और  छोटानागपुर के भूमिपुत्र रौतिया समाज के गौरव आन बान और शान वीर शहीद बख्तर साय एवं वीर शहीद मुंडल सिंह के वंशज और कुर्शीनामा की सुची !,,,,, #जय_हिंद_जय_भवानी_जय_रौतिया।

Rautiya समाजिक नेताओं का जूठ (ST आरक्षण का पर्दाफाश)

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#रौतिया_समाज_के_नेताओं_के_सच_और_झुठ_का_DNA_Test! हमारे रौतिया समाज के नेताओं द्वारा कुछ दिन पहले अपने बयान को अखबार के जारिये लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गयी और इससे पहले भी इसी तरह के कई बयान बाजी को अखबारों में Publish करते रहते हैं- उनमें से एक बड़ा बयान ये है कि रौतिया जाती पहले अनसूचित जनजाती में शामिल था, जनजातीयों के संवैधानिक सुची में रौतिया जाती सुचित था,,,,बगैरह...बगैरह...बगैरह...बगैरह...!  कुछ दिन पहले समाज के नेताओं के द्वारा एक ऐसा ही बयान अखबार के द्वारा प्रकाशित किया गया था कि रौतिया जाती का नाम अनसूचित जनजाती में शामिल था, लेकिन रौतिया जाती को बाद में सुची से हटा दिया गया ,, लेकिन इस बार के बयान में समाज के नेताओं द्वारा तारीख को भी बताया गया कब रौतिया जाती को अनसूचित जनजाती से हटाया गया और वो तारीख था 22 जनवरी 1951। यहां गौर करने वाली खास बात ये है कि नेताओं के बयान के अनुसार 1951 में हटाया गया यानि 1951 से पहले वाले जनजाती की सुची में रौतिया जाती का उल्लेख होना ही चाहिए। 2nd..तस्वीर 6 सितम्बर 1950 में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित अनसूचित जनजाती का गैजेट का

Khanda puja (Rautiya samaj)

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रौतिया परिवार के द्वारा शस्त्र पुजा (खंडा पुजा) गांव- टंगरपली (उड़ीसा)।

Rautiya समाज football match aanandpur

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अखिल भारतीय रौतिया समाज विकास परिषद् कर द्वारा फुटबॉल प्रतियोगिता कर आयोजन करल जाहे आउर उकरे बैनर तले प.सिंहभूम कर अनंदपुर में रौतिया समाज फुटबॉल प्रतियोगिता कर कुछ झलकियां।

Rautiya समाज अपनी भाषा संस्कृति बचाए

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#संस्कृति_भाषा_को_सहेजे_रौतिया_समाज। ये छत्तीसगढ़ में हो रहे रौतिया समाज वार्षिक महा मिलन समारोह तथा खेलकुद कार्यक्रम वर्ष 2017 सत्र पर छ.ग राज्य मंत्री केदार कश्यप जी ने समाज से अपील किये थे कि भाषा संस्कृति को सहेजे रौतिया समाज। लेकिन इससे पहले या इसके बाद समाज के किसी भी पदाधिकारी ने समाज को अपनी भाषा संस्कृति सहेजने संरक्षण करने की पहल करने के लिए समाज को कहना बहुत दुर की बात है ये लोग तो समाजिक सभाओं में भी अपनी मातृभाषा नागपुरी/सादरी को नहीं बल्कि राष्ट्र भाषा हिंदी का व्यवहार करते अपने घरों में अपने बच्चों के साथ हिंदी में बाते करते हैं,,,,फिर आप अपने समाज के आने वाला पीढ़ी को क्या दे रहे हैं ? हमें सभी भाषाओं को सिखनी चाहिए बोलनी चाहिए, हिंदी हमारा राष्ट्र भाषा है बेशक हमें जानना चाहिए बोलना तथा सम्मान करना चाहिए, लेकिन अपनी मातृभाषा को भी बराबर सम्मान देना चाहिए। लेकिन ये देखा गया है कि हमारे समाज में पढ़े लिखे वर्ग ही हैं जो अपनी मातृभाषा का अवहेलना करते हैं। आप दक्षिण भारत (South India) में जाकर देखिए अपनी भाषा संस्कृति को कितनी मजबूती से सहेज कर रखे हैं और उनका समाज हर क

Rautiya meeting jhirpani ,raurkela ,odisa

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सितंबर 5. 2018 युवा संगठन की शुरूवात की गई , दो दिवसीय बैठक झिरपानी ,ओड़िसा में ,झारखण्ड ,ओड़िसा और छतीसगढ़ कर युवा मन शामिल रहलय साथ ही वहाँ कर रौतिया कमिटी कर सदस्य ।मुख्य बिषय सामाजिक पत्रिका और यूट्यूब चैनल के लेकर रहे,,

Sadan samaj community of Assam bengal

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#सदान एक ऐसा समाज जो असम बंगाल में आकर अपना भविष्य भी चाय पौधों के साथ ही बंध दिया। जिस तरह चाय पौधा खामोशी से कभी गर्मी की कड़कती मार को चुपचाप सहता तो कभी ओला वृष्टि की मार तो कभी कड़कती ठंड को सहता पर खमोशी से खड़ा रह अपना फर्ज अदा किये जाता है... ठीक उसी तरह सदान लोग भी अपना फर्ज निभा हंसते हुए बड़ी ही सादगी से अपना जीवन गुजरते हैं। असम बंगाल में रहते हम सदान लोगों को कई दशक बित गया, हमने यहां उथल पुथल होते हुए देखे...गम को छुपा लोगों को बड़ी सी हंसी हंसते हुए भी देखा... हमने यहां  अपना योगदान हर क्षेत्र में दिये... इन दोनो राज्यों में सरकार बनाने में हम सदानों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है... लेकिन यहां हमें पहचानता कौन है जानता कौन है की हम कौन हैं ??? हम सदानो का पहचान क्या है...हमारा अस्तित्व क्या है वजूद क्या है ? हम सदान इतने भोले भाले गधे बेचारे टाईप के निकले की आदिवासी समाज के कुछ राजनीति करने वाले दल्ले बड़ी होशियारी से राजनीति षड़यंत्र कर सदान समाज का पहचान अस्तित्व मिटाकर सदान के उपर आदिवासी होने का झुठा मोहर लगा दिया... सदानों को इस बात का लोभ दिया गया कि तुम लोग भी खुद