बख्तर साय और मुंडल सिंह का जीवन

हमारा मकसद किसी भी जाती समाज या समुदाय को ठेस पहुँचाना नहीं है। हम तो बस इतना चाहेंगे कि आप इस पर चिंतन करें, मंथन करें। मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के जुल्म और अत्याचार के खिलाफ हिंदुस्तान के वीर सपूतों ने अपनी मातृभूमि को उनके जुल्मों सितम से छुडाने के लिए अपने प्राणों की अहुती दी, बलिदान दी। लेकिन अफशोस इस बात का है कि बहुत से वीर सपूतों को उनका सही सम्मान नहीं मिला, उनको इतिहास में दबाने की कोशिश की गयी। ऐसे ही माँ भारती के सपूत झारखंड के गुमला के सदान समुदाय के रौतिया समाज के महावीर योद्धाओं ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के छक्के छुडा दिए थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी छत्तीसगढ व झारखंड के लोगों के जुबान पर है। दोनो वीर शहीद श्रद्धा के साथ पुजे जाते हैं। बख्तर साय नवागढ परगना (वर्तमान में रायडीह) के जमींदार थे। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी से लोहा लेकर उन्हें पराजय का स्वाद चखाया। पराजय के बाद अंग्रेजों ने अपने कुटनीति व छल कपट का चाल के तहत छोटानागपुर के महाराजा इंद्रनाथ शाहदेव से संधी करली। इसके बाद अंग्रेजो गरीब जनता के पेट पर लाथ मारते हुए लोगों से 12 हजार रू. टैक्स की वसूली करने लगे। टैक्स वसूली करने के लिए अंग्रेज लोगों पर जुल्म व सितम ढाने लगे। अंग्रेजों के जुल्म व सितम से जमींदार और रैयात विचलीत हो उठे। संधी के बाद महाराजा ने अपने सेनापति हीरा राम को टैक्स वसूली के लिए नवागढ भेजा। अंग्रेजों के जुल्म से आक्रोशित बख्तर साय ने हीरा राम का सिर कटवा कर थाली में सजाकर महाराजा के पास भेजवा दिया। महाराजा इससे क्रोधित होकर ईस्ट इंडिया कंपनी को इसकी जानकारी दी। 11 फरवरी 1812 ई. को रामगढ के मजिस्ट्रेट ने लेफ्टिनेंट डोनेल के नेतृत्व में हजारीबाग की सैन्य टुकडी को नवागढ के जमींदार बख्तर साय को पकडने के लिए भेजा। इसी बीच रामगढ बटालियन कमांडेंट आर मार्ट ने छोटानागपुर के बरवे क्षेत्र जशपुर और सरगुजा के राजा को पकडने के लिए एक पत्र लिखा। साथ ही पुरे क्षेत्र को नाकाबंदी करने के लिए मदद मांगी। जशपुर राजा के साथ आर मार्ट का आच्छा सम्बंध था, इसका फायदा उठाते हुए लेफ्टिनेंट डोनेल ने हजारों सैनिकों के साथ मिलकर नवागढ को घेर लिया।  अंग्रेजों की मंसूबे की जानकारी पनारी के जमींदार मुंडल सिंह को हो गई। वे बख्तर को सहयोग देने के लिए नवागढ पहुँच गये। दोनो ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया। चूँकी नवागढ 1812 के आस पास घना जंगल था, ऊँचे ऊँचे पहाड थे। बख्तर व मुंडल क्षेत्र की वस्तु स्थिति से अवगत थे। वहीं अंग्रेजों को मुंडल व बख्तर तक पहुंचने में परेशानी होने लगी। अंग्रेजों ने एक विशेष रणनीति के तहत नवागढ को चारो ओर से घेर लिया। इसके बाद बख्तर व मुंडल एक गुफा में प्रवेश कर गए। अंग्रेजों को जब इसकी जानकारी हुई, तो गुफा तक जाने वाली नदी के पानी की धारा को बंद कर दिए। ताकि बख्तर व मुंडल अपने सैनिकों के साथ नदी का पानी नहीं पी सके, अपने सैनिकों का हालात दिन ब दिन बिगडते देख वहाँ से निकलकर जशपुर के राजा इंद्रजीत सिंह के पास गये। फिर वहाँ से दुसरे स्थान के लिए निकलने के बाद 23 मार्च 1812 को दोनो पकडे गये और कोलकाता लाये गये । 4 अप्रैल 1812 दोनों को कोलकाता के फोर्ट विलियम स्थान पर ले जाकर फांसी दे दी। लेकिन उनकी शहादत आज भी इस क्षेत्र में गूँज रही है।........ लेकिन हमें आफशोस इस बात का है कि इन दोनों वीर स्वतंत्र सेनानी महापुरूषों को उनका उनके ही कर्म भूमी में सही सम्मान नहीं मिल रहा है। ये पुरा सदान (नागपुरी) समुदाय के लिए बडी दुख की बात है, ये पुरे रौतिया  समाज के लिए बहुत ही दुख की बात है। आप सबसे विनती है निवेदान है इसपर आप सब एकबार चिंतन जरूर करें।। वीर शहीद बख्तर साय....अमर रहे ! वीर शहीद मुंडल सिंह....अमर रहे।

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