बचपन की यादें

#पढ़े_और_बचपन_की_यादें_ताजा_करे ।बचपन की वो यादें ,जब बच्चो के साथ खूब खेला करते थे ,कभी साइकिल के पहिए को गाड़ी बना लेते ,कभी चप्पल को काट पहिए  बना लेते ,कंचे आटे खेलते दिन गुजर जाता था ,लुका छिपी का खेल बड़ा मस्त होता था , गांव के नदियों में या तालाबो में खूब उछल उछल कर छलांगे लगाते ,और कभी झगड़े होते तो wwe जैसा एक्शन वाला मार पीट भी हो जाता ,,बचपन में सबका उपनाम होता था ,चिढ़ाने के लिए कई तरह के नामो से संबोधन  किया जाता था ,बचपन में दुनियादारी से दूर अपनी दुनिया थी ,बचपन में मार पीट और लड़ाई का भी अपना मजा होता था ,होली के दिन का बचपन में काफी इंतेजार रहता था ,कुछ दिन पहले से ही बांस काट कर पिचकारी बनाई जाती थी ,और पलास के फूलों को पानी में उबालकर रंग बनाया जाता था,शैतान बच्चे तो रंग में केले का गद मिला  देते ,उनको ऐसा करके लगता कि मानो उन्होंने परमाणु हथियार बनाया हो ,,खूब दौड़ा दौड़ा कर रंग लगाया जाता ,फिर होली खेलने के बाद सभी नदी तालाबो में चेहरे और हाथो का रंग निकालते ,घरों में उस दिन गरमा  गर्म धुसका ,बरा ,मालपुआ ,बन कर तैयार होता था ,,,गांव में बीती ,पीठो का  खेल भी बड़ा हमने खेला है ,  बांस को काटकर ठूस बनाते जिसमे पुटुस और बोकेन्द का फल डालकर बन्दुक जैसा इस्तेमाल करते ,ब्लैक एंड वाइट टेलीविजन में रामायण देखकर खुद को राम समझते और गंगई के पौधे से तीर बनाते और खूब युद्ध जैसा खेल चलता ,मैंने तो कई दिन स्कूल जाने से बचने के लिए आमो के पेड़ों में दिन गुजार  दिया है ,बचपन में आम के पेड़ों में भी खूब छुवा छुवी का खेल चलता था,,छोटे छोटे आम को ब्लेड या चाकू से काटकर बड़े चाव से नमक मिर्च देकर खाया जाता था ,,गर्मियों में तालाब और नदी में खूब पानी के अंदर अंदर जानकर पकड़ने का खेल चलता था,,बचपन में नाव (डोंगा )चला कर खेलने का मजा ही कुछ और था ,नाव में सभी लोग खड़े होकर खूब हिलाते ,और छलांग लगा कर सीधे पानी में , कई बार तो लड़ाई भी हुई है नाव को लेकर ,,कई बार नाव में पानी भर डूब जाता था ,,घरों से फिल्मे देख सभी लोग कहानी बताते और बालू में उसी की तरह फाइट चलता ,, बचपन कई रंगों कई  यादों से भरा है ,वक्त जरूर बदल गया पर यादे आज भी जिन्दा हैं ,लिखना तो कई बात चाहता हु पर किसी और दिन ।उमीद करता हु आपका भी बचपन खट्टे मिठे पलों से भरा होगा ।,जय हिंद

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