Rautiya समाजिक नेताओं का जूठ (ST आरक्षण का पर्दाफाश)



#रौतिया_समाज_के_नेताओं_के_सच_और_झुठ_का_DNA_Test!
हमारे रौतिया समाज के नेताओं द्वारा कुछ दिन पहले अपने बयान को अखबार के जारिये लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गयी और इससे पहले भी इसी तरह के कई बयान बाजी को अखबारों में Publish करते रहते हैं- उनमें से एक बड़ा बयान ये है कि रौतिया जाती पहले अनसूचित जनजाती में शामिल था, जनजातीयों के संवैधानिक सुची में रौतिया जाती सुचित था,,,,बगैरह...बगैरह...बगैरह...बगैरह...!
 कुछ दिन पहले समाज के नेताओं के द्वारा एक ऐसा ही बयान अखबार के द्वारा प्रकाशित किया गया था कि रौतिया जाती का नाम अनसूचित जनजाती में शामिल था, लेकिन रौतिया जाती को बाद में सुची से हटा दिया गया ,, लेकिन इस बार के बयान में समाज के नेताओं द्वारा तारीख को भी बताया गया कब रौतिया जाती को अनसूचित जनजाती से हटाया गया और वो तारीख था 22 जनवरी 1951।
यहां गौर करने वाली खास बात ये है कि नेताओं के बयान के अनुसार 1951 में हटाया गया यानि 1951 से पहले वाले जनजाती की सुची में रौतिया जाती का उल्लेख होना ही चाहिए।
2nd..तस्वीर 6 सितम्बर 1950 में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित अनसूचित जनजाती का गैजेट का है (The Gazzete of India, Ministry of Law, The Constitution of Shedule tribes order 1950, New Delhi, Published by Authority).
1950 के तब के बिहार राज्य के जनजाती सुची में रौतिया जाती का कहीं उल्लेख ही नहीं है,,,,फिर रौतिया जाती के नेता किस रौतिया जाती को 1951 में हटाने की बात लोगों को बताते फिर रहे हैं लगातर कई सालों से????
लगातर समाज के ठेकेदारों (नेता) द्वारा समाज को जागृत,जानकार बनाने के बजाय गुमराह किया जाता रहा है, समाज के लोगों को बेवाकुफ बनाया जाता रहा है। समाज को पीछे ढकेलने का काम किया जाता रहा है। किसी भी जाती समाज का समाज सेवक के नाम पर अगर ऐसे ठेकेदार होंगे उस समाज का पिछड़ना निश्चित ही है।
ऐसे ही समाज के नेताओं के झुठे बयान बाजी से समाज के पढ़े लिखे बेवाकुफ युवा भाई बहन लोग खुश हो जाते हैं, इनके साथ समाज के बुजुर्ग वर्ग भी खुश होते हैं शाबाशी देते हैं समाज के नेताओं को, लेकिन अफशोश कभी भी सच को खोजने,जानने और मानने की कोशिश किसी ने नहीं की।
और सच यही है के जनजातीयों (आदिवासीयों) के लिए दिया गया सुविधा को किसी अन्य जाती समाज को कभी दिया जाएगा और न ही मिलेगा। समाज के नेताओं का धंधा पानी चलता है ऐसे झुठे बयान बाजीयों से और आपलोग भी तो बहुत खुश होते हैं...है न 🤗🤗🤗,,,
अब धर्म को आधार बना रहे हैं कि रौतिया सरना धर्म को मानता है... क्या इस झुठ को सरकार पकड़ ही नहीं पाएगी कि रौतिया एक हिंदु जाती है। हम वर्षों से एक ही इलाकों में आदिवासीयों के साथ रहते आ रहे हैं और यही वो कारण है के संस्कृतियों का आदान प्रदान होना स्वभाविक है, करम जितिया सरहुल झारखंड की राज्कीय संस्कृति है सिर्फ आदिवासीयों का नहीं।
आप लोग इस गलतफहमी में मत रहिए कि आप खुद को आदिवासी कहलांएगे या फिर किसी के कह देने से आप सोचते हैं आप को आदिवासीयों को मिलने वाली सुविधाएं मिल जाएगा????
 या फिर आप पिछड़ गये गरीब हो गये या फिर खुद को गरीब बना लेने से सरकार से सहानुभुति मिल जाएगी और सरकार आपको भी आदिवासीयों को मिलने वाली सुविधा दे देगी....अगर आप में से कोई ऐसा सोचता है तो उसके जैसा महामुर्ख सायद ही कोई होगा।
आप खुद के काबिलयत को पहचानें, खुदको काबिल बनायें, मेहनात करें कुछ आच्छा करें और जीवन में आगे बढे़,,,, जो न कभी सच था और न कभी होगा... समाज के नेता आदिवासीयों को मिला हुआ सुविधाओं को गिनवाकर दिखा दिखा कर फिर समाज के नेताओं के द्वारा एसटी में शामिल करने, दिलाने और मांग करने की राजनीति करते रहेंगे, शोध करवायें हैं,रिपोर्ट भेजे हैं, इस बार होना का Chance है...जैसे लोभ आप लोगों को दिया जाएगा,,, लेकिन सच इन सबसे कोसो दुर होगा  और आप उसी लोभ में उनके पीछे पीछे भागते रहेंगे,,....हहहहहह,,, अब तो आँख से पट्टी हटाओ और सच को माननिए,,,, खुद के साथ आप अपने परिवार को भी धोखा मत दिजिए।
आप Tribal (आदिवासीयों यानी जनजातीयों) के सुविधाओं के लोभ में उसे पाने के लोभ में आप अपना बहुमूल्य समय बर्बाद न करें...!
                 #जय_हिंद_जय_भवानी_जय_रौतिया।

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