Rautiya village बेलगांव ,gumla
#बेलगांव #जो_आँखों_ने_देखा_उसी_को_इस_लेख
#में_लिख_रहा_हूँ ,गुमला से बिलकुल कुछ ही दूरी में स्तिथ रौतिया गांव बेलगाँव । बेलगाँव के बारे काफी कुछ सुना था पर कभी जाने का मौका नही मिला था ,कुछ महीने पहले रास्ते से गुजर रहा था तो गूगल मैप से गांव को ढूंढ कर बेलगाँव चला गया , गांव से पहले एक रौतिया छात्रवास दिखा आगे एक आम का बगीचा उसके आगे गया तो रास्ते के किनारे स्वतंत्रा वीर सेनानी बख्तर साय और मुंडल सिंह की मूर्ति बनी हुई थी , आगे गांव के अंदर जैसे ही घुसा सामने एक बजरंग बली की प्रतिमा नजर आयी ,भगवान को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ा , चारों तरफ मैंने नजरें गुमा कर पूरे गांव को देखा ,,पुरे गांव को देखने के बाद मैं काफी उदास हो गया ,,हर रौतिया गांव की तरह यह गांव भी मुझे एक सन्नाटे से भरी मायूसी वाली जिन्दगी लोगो की लगी , ,मेरे मन में एक ही बात चल रही थी ,की एक गांव जो गुमला के इतने नजदीक है, फिर भी गांव में समय के साथ कुछ नही बदला है ,चंद सालों में गुमला के चारो ओर घर बनते जा रहे ,दूर दूर से लोग जमीनें लेकर घर बना रहे दुकानें खोल रहे , और जो कई पीढ़ियों से उस गांव में रह रहे ,वो आज भी उसी गांव में हैं ??? हर रौतिया गांव की यही कहानी , छोटे छोटे शहरो के नजदीक कई रौतिया गांव होते हैं ,पर आज भी लोग उसी गाँव में जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं ,दूसरी तरफ बाहर से आये हुए लोग जमीनें लेकर,बिजनेस करके अच्छी जिंदगी जी रहे हैं ,, कुछ चंद सालो में हमारा समाज और गरीब और पिछड़ा हो गया है ,,पर दुःख इस बात का होता है, कि लोग इसी पिछड़े समाज के लोगो को गुमराह करके पेट पालने का जरिया बना कर उसे सामाजिक कार्य का नाम देकर पदों में बैठे हैं और जनता को मुर्ख बना रहे हैं ,,,,,एक अच्छा समाज एक अच्छा परिवार धीरे धीरे और पिछड़ा हो रहा है ,आजकल लोग लाख बाहर से कितना भी दिखावा कर लें ,अच्छे कपड़े पहन ले या चकाचौंद दिखाये पर सबका घर और समाज का हाल बहुत ज्यादा ख़राब है ,, जिस समाज को हमने नीच समझा था छुवाछूत जिन्हें मानते थे ,वे हमारे समाज से कई गुणा आगे निकल चुके हैं ,वे लोग वक्त के साथ खूद को काफी बदल लिए हैं ,जीवन शैली से लेकर हर एक क्षेत्र में ,,,,,,हमने आज भी इस पिछड़ेपन में हमारे अंदर के अहंकार घमंड को बरकरार रखा है और यही कारण है कि हम दिखावा करने से बाज नही आते ,और इसी जूठी शान में अपना सबकुछ लूटा दिए ,,किसी को मेरी बात बुरी लगी तो समझना ये कड़वा सत्य है ,
जो आँखों से देखा अनुभव किया वही लिख रहा हूँ ,
हमारे समाज में एक दूसरे से प्रेंम ही नही है सब लड़ते रहते हैं ,न आगे बढ़ते हैं न बढ़ने देते हैं, ,1 साल से मैं सोचता रहा की समाज में कैसे बदलाव किया जाये ,तो अंत में यही पाया कि ,हमे खुद से खुद में कार्य करना होगा ,अपने अपने परिवार को ठीक करना होगा , बच्चो को सही रास्ते सही दिशा में ले जाना होगा तबी नई पीढ़ी पिछड़ेपन का शिकार नही होगी , कुछ भी करो पर परिवार समृद्ध करो यही एक मात्र रास्ता है समाज में बदलाव करने का ,
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