Rautiya समाज अपनी भाषा संस्कृति बचाए

#संस्कृति_भाषा_को_सहेजे_रौतिया_समाज।

ये छत्तीसगढ़ में हो रहे रौतिया समाज वार्षिक महा मिलन समारोह तथा खेलकुद कार्यक्रम वर्ष 2017 सत्र पर छ.ग राज्य मंत्री केदार कश्यप जी ने समाज से अपील किये थे कि भाषा संस्कृति को सहेजे रौतिया समाज।

लेकिन इससे पहले या इसके बाद समाज के किसी भी पदाधिकारी ने समाज को अपनी भाषा संस्कृति सहेजने संरक्षण करने की पहल करने के लिए समाज को कहना बहुत दुर की बात है ये लोग तो समाजिक सभाओं में भी अपनी मातृभाषा नागपुरी/सादरी को नहीं बल्कि राष्ट्र भाषा हिंदी का व्यवहार करते अपने घरों में अपने बच्चों के साथ हिंदी में बाते करते हैं,,,,फिर आप अपने समाज के आने वाला पीढ़ी को क्या दे रहे हैं ?
हमें सभी भाषाओं को सिखनी चाहिए बोलनी चाहिए, हिंदी हमारा राष्ट्र भाषा है बेशक हमें जानना चाहिए बोलना तथा सम्मान करना चाहिए, लेकिन अपनी मातृभाषा को भी बराबर सम्मान देना चाहिए। लेकिन ये देखा गया है कि हमारे समाज में पढ़े लिखे वर्ग ही हैं जो अपनी मातृभाषा का अवहेलना करते हैं। आप दक्षिण भारत (South India) में जाकर देखिए अपनी भाषा संस्कृति को कितनी मजबूती से सहेज कर रखे हैं और उनका समाज हर क्षेत्र से समृध है और हम ठीक उनके विपरीत हैं...ऐसे क्यों हैं हम ?
हमारी मातृभाषा में एक दुसरों के लिए सम्मान है...पत्नी अपने पति के लिए अपनी भाषा में ही सम्मान और आदार प्रकट करती हैं...जैसे- राउरे कहाँ जाएक लइग ही? जीजा के लिए साली का सम्मान...भाटु राउरे आउर दीदी कर जोड़ी बहुत सुंदर लगेल। तो वहीं मामा भइगना के सम्पर्क में एक दुसरे के लिए सम्मान...जैसे- मामा तोहरे आउर कब आबा हामर घर, तोहरे तो एक धंव हों नी आवल हामर घर भइगना...इस तरह से।
अपने से बड़ों को सम्मान देते हैं हम हमारी भाषा में राउर तथा राउरे यानी आप तथा आपका होता है। तोंए कहां जाबे....ऐसे अपने दोस्तों तथा अपने बराबर के लिए व्यवहार करते हैं हम...लेकिन देखा जा रहा है कि हम अपनी भाषा में अपने बड़ों के लिए सम्मानजनक भाषा का व्यवहार करना भूलते जा रहे हैं,,, कोई दूसरा जाती या समाज हमारी भाषा को व्यवहार तो करते हैं तो असम्मान जनक भाषा का ही व्यहार करते हैं अपने से बड़ों के लिए भी, लेकिन हमें अपनी भाषा को हमें सहेजना है हमें संरक्षण करना है अपनी भाषा का शुद्धता स्पष्टता और सम्मान रूप को बनाये रखना है।

कहां भाग रहे हैं हम, क्यों अपनी धरोहर को अवहेलना कर रहे हैं हम? हमारी मातृभाषा नागपुरी बहुत ही समृध भाषा है, हिंदी से ज्यादा हमारी मातृभाषा नागपुरी का सहारा लेता है आदिवासी समाज अपने बीच में सम्पर्क करने के लिए और हम अपनी ही भाषा का सम्मान करना छोड़ अवहेलना करते हैं। आप अपनी मातृभाषा की विशेषता को समझिए और अपने घर के छोटे बच्चों को भी समझाइये.. आप जरूर गर्व करेंगे... हमारे समाज के आने वाला पीढ़ी भी जरूर गर्व करेगा और अपनी भाषा संस्कृति को सहेजेगा भी।

किसी भी जाती या समाज/समुदाय को समृध बनाने में उसकी भाषा संस्कृति का बहुत ही अहम भूमिका होती है। भाषा संस्कृति ही पहचान होती है।

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