Sadan samaj community of Assam bengal

#सदान एक ऐसा समाज जो असम बंगाल में आकर अपना भविष्य भी चाय पौधों के साथ ही बंध दिया। जिस तरह चाय पौधा खामोशी से कभी गर्मी की कड़कती मार को चुपचाप सहता तो कभी ओला वृष्टि की मार तो कभी कड़कती ठंड को सहता पर खमोशी से खड़ा रह अपना फर्ज अदा किये जाता है... ठीक उसी तरह सदान लोग भी अपना फर्ज निभा हंसते हुए बड़ी ही सादगी से अपना जीवन गुजरते हैं।

असम बंगाल में रहते हम सदान लोगों को कई दशक बित गया, हमने यहां उथल पुथल होते हुए देखे...गम को छुपा लोगों को बड़ी सी हंसी हंसते हुए भी देखा... हमने यहां  अपना योगदान हर क्षेत्र में दिये... इन दोनो राज्यों में सरकार बनाने में हम सदानों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है... लेकिन यहां हमें पहचानता कौन है जानता कौन है की हम कौन हैं ??? हम सदानो का पहचान क्या है...हमारा अस्तित्व क्या है वजूद क्या है ?

हम सदान इतने भोले भाले गधे बेचारे टाईप के निकले की आदिवासी समाज के कुछ राजनीति करने वाले दल्ले बड़ी होशियारी से राजनीति षड़यंत्र कर सदान समाज का पहचान अस्तित्व मिटाकर सदान के उपर आदिवासी होने का झुठा मोहर लगा दिया... सदानों को इस बात का लोभ दिया गया कि तुम लोग भी खुद को आदिवासी कहलाओगे तो तुम सदान लोगों को भी आदिवासी लोगों को मिलने वाली सुवाधाएं मिलेगी... सबसे बड़ा लोभ इसे को देते हैं,, जो कि सबसे बड़ा झूठ है। इस तरह सदानो को गुमराह कर लालच देकर तथाकथित आदिवासी नेता अपने आदिवासी संगठनों के लिए दल बल दिखाने के लिए सदानो का भीड़ जुटाकर  सदानो की भीड़ को भी आदिवासी बताकर आदिवासीयों के लिए सुविधाएं लेते रहे हैं वर्षों से तथा साथ ही आदिवासी अपना आदिवासी पहचान को बनाये रखा और सदान हालाल का बकरा बनते रहा है,....हहहहहहह !
सदान अपना पहचान खोया वजूद खोया अगर सदान खुद के पहचान को बनाए रख समाजिक एकता बनाकर अपने सुविधाओं के लिए हक के लिए आवाज उठाता तो आज जिस तरह बंगाल में नेपाली समाज के लिए विकास बोर्ड तथा भाषा संस्कृति संरक्षण बोर्ड (Development Board & Culture Language Conserve Board ) है, जिस तरह आदिवासी समाज के लिए जनजाती (आदिवासी) विकास बोर्ड है, Tarai Doors Tribal Task upliftment Board है,, उसी तरह आज सदान समाज के विकास हित तथा सदानी भाषा संस्कृति संरक्षण बोर्ड (Sadan Development Board,,,,Sadani Culture & language Conservation Board)  होता।
लेकिन क्या करें हम सदान सीधे साधे गधे बेचारे हमें राजनीति चेतना जो नहीं है। कुछ तथाकथित दोगले टाईप आदिवासी नेता हम सदानो का भाषा संस्कृति को भी आदिवासी का बताते आ रहे हैं और आज असम बंगाल में सादरी का मतलब सदान नहीं आदिवासी होता है,,,हहहहहह... ऐसा कुछ दोगले आदिवासी नेताओं ने सदानों का हाल बनाकर रखा हुआ है अपनी दोगली राजनीति फायदों के लिए। बड़े विद्वान कह गये और हमेशा कहते हैं भाषा संस्कृति ही पहचान है फिर असम बंगाल वाले सदान के पास क्या बचा ???

क्या बिडम्बना है...सदान अपनी मातृभाषा सदानी यानी सादरी यानी नागपुरी संस्कृति को भी अपना नहीं कह पा रहा।

असम बंगाल में सदान लोग तो हैं लेकिन सदान लोगों का अपना कोई पहचान नहीं है वजूद नहीं है।  सदानो को बड़ी बड़ी राजनीति का सिकार शुरू से बनाते आये हैं और सदान बनते आया है। चाहे वो राजनीति पार्टीयों के नेताओं द्वारा या फिर आदिवासी संगठनों के नेताओं द्वारा। हमें आदिवासी समाज के लोगों के साथ कोई बैर नहीं, आदिवासी समाज और सदान समाज के लोगों का भाईचारा बहुत गहरा है और आदिवासी और सदान का भाईचारा बना रहना चाहिए। हमें उन दोगले टाईप वाले कुछ तथाकथित आदिवासी नेताओं से बैर है जिन्होंने सदान समाज को बर्बाद किया साथ में आदिवासीयों का भाषा संस्कृति को भी बर्बाद कर रहे हैं।

कब तक सोते रहने की ढोंग करोगे तू सदान...कब तक खुद के पहचान को छुपा दुसरे की पहचान पर जीयोगे... जागो तुम्हारा सब लुट जा रहा छिन जा रहा है...अब भी वक्त है समेट ले बचा ले अपनी धरोहर पहचान को दुनिया को बता तुम कौन हो तुम्हारी पहचान क्या है।
             #जय_हिंद_जय_भुमिपुत्र_सदान

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